हडप्पा की लिपि की तरह
अब तक नहीं पढी जा सकी
मौन की भाषा…
पानी सा रंगहीन नहीं होता मौन
आवाज़ की तरह
इसके भी होते हैं हज़ार रंग
बही के पन्नों पर लगा अंगूठा
एकलव्य का ही नहीं होता हमेशा
आलीशान इमारतों के दरवाज़ों पर
सलाम करते हांथों में
नफ़रत का दरिया होता है अक्सर
पलता रहता है नासूर सा
घर की अभेद दीवारों के भीतर
एक औरत के सीने में
पसर जाता है शब्दों के बीच
निर्वात सा
और सोख लेता है सारा जीवनद्रव्य
उतना निःशब्द नहीं होता मौन
उतना मासूम और शालीन
जितना कि
सुनाई देता है अक्सर
अशोक कुमार पाण्डेय कृत साभार
Continue Reading »
अब तक नहीं पढी जा सकी
मौन की भाषा…
पानी सा रंगहीन नहीं होता मौन
आवाज़ की तरह
इसके भी होते हैं हज़ार रंग
बही के पन्नों पर लगा अंगूठा
एकलव्य का ही नहीं होता हमेशा
आलीशान इमारतों के दरवाज़ों पर
सलाम करते हांथों में
नफ़रत का दरिया होता है अक्सर
पलता रहता है नासूर सा
घर की अभेद दीवारों के भीतर
एक औरत के सीने में
पसर जाता है शब्दों के बीच
निर्वात सा
और सोख लेता है सारा जीवनद्रव्य
उतना निःशब्द नहीं होता मौन
उतना मासूम और शालीन
जितना कि
सुनाई देता है अक्सर
अशोक कुमार पाण्डेय कृत साभार