
अपने प्रिय को सुनाता हूँ एक कथा जैसे एक बढ़ई गढ़ता है लकड़ी को रच देता है काठ का घोड़ा एक जादूगर आता है और उसे छू लेता है सजीव हो उठता है काठ का घोड़ा एक राजकुमार कसता है उस पर जीन और नीले आकाश में उड़ जाता है कितने भाग्यशाली हैं हे प्रिय काठ का घोड़ा, राजकुमार और नीला आकाश उनसे भी भाग्यशाली है हे प्रिय लकड़ी को जोड़कर नया संसार रचता वह बढ़ई काश मैं भी तुम्हें रच पाता, तुम एक फूल होती जिसमें खिला होता मेरा प्यार तुम सावन की बारिस होती जिसमें बरसता रहता प्यार तुम ब्रह्मावर्त से आने वाली मलयनील होती जिसमें महकता रहता प्यार तुम वो नदी होती जिसमें ...
Continue Reading »