कौन बचा है जिसके आगे इन हाथों को नहीं पसारा यह अनाज जो बदल रक्त में टहल रहा है तन के कोने-कोने यह कमीज़ जो ढाल बनी है बारिश सरदी लू में सब उधार का, माँगा चाहा नमक-तेल, हींग-हल्दी तक सब कर्जे का यह शरीर भी उनका बंधक अपना क्या है इस जीवन में सब तो लिया उधार सारा लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार. ______अरुण कमल, अपनी केवल धार से सा ...
Wednesday, August 13, 2008
Sunday, August 10, 2008
ईदगाह
रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है. कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है. वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है. आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है. गॉंव में कितनी हलचल है. ईदगाह जाने की तैयारियॉँ हो रही हैं. किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है. किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जाता है. जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें. ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी. तीन कोस ...
Saturday, August 9, 2008
ठाकुर का कुआँ
जोखू ने लोटा मुंह से लगाया तो पानी में सख्त बदबू आई. गंगी से बोला-यह कैसा पानी है? मारे बास के पिया नहीं जाता. गला सूखा जा रहा है और तू सडा पानी पिलाए देती है! गंगी प्रतिदिन शाम पानी भर लिया करती थी. कुआं दूर था, बार-बार जाना मुश्किल था. कल वह पानी लायी, तो उसमें बू बिलकुल न थी, आज पानी में बदबू कैसी! लोटा नाक से लगाया, तो सचमुच बदबू थी. जरुर कोई जानवर कुएं में गिरकर मर गया होगा, मगर दूसरा पानी आवे कहां से? ठाकुर के कुंए पर कौन चढ़नें देगा? दूर से लोग डॉँट बताऍगे. साहू का कुऑं गॉँव के उस सिरे पर है, परन्तु वहॉं कौन पानी भरने देगा? कोई ...
Friday, August 8, 2008
कब्रिस्तान में पंचायत

यह शीर्षक कुछ चौंकानेवाला लग सकता है. पर मेरी मजबूरी है कि जिस घटना का बयान करने जा रहा हूँ, उसके लिए उसके सिवा कोई शीर्षक हो ही नहीं सकता. कब्रिस्तान वह जगह है जहाँ सारी पंचायतें खत्म हो जाती हैं. मुझे याद आता है कि रूसी कवयित्री अन्ना अख्मातोवा की एक युद्धकालीन कविता में बमबारी से ध्वस्त पीटर्सबर्ग (जो तब लेनिनग्राद कहलाता था) के बारे में एक तिलमिला देने वाली टिप्पणी है, जिसमें वे कहती हैं—‘‘इस समय शहर में अगर कहीं कोई ताज़गी है तो सिर्फ कब्रिस्तान की उस मिट्टी में, जो अभी-अभी खोदी गई है.’’ शब्द मुझे ठीक-ठीक याद नहीं. पर आशय यही है. कब्रिस्तान ...
Thursday, August 7, 2008
राजेश जोशी की कुछ पंक्तियाँ
सबसे बड़ा अपराध है इस समयनिहत्थे और निरपराध होनाजो अपराधी नहीं होंगेमारे जायेंगे.*****जब तक मैं एक अपील लिखता हूँआग लग चुकी होती है सारे शहर मेंहिज्जे ठीक करता हूँ जब तक अपील केकर्फ्यू का ऐलान करती घूमने लगती है गाड़ीअपील छपने जाती है जबतक प्रेस मेंदुकानें जल चुकी होती हैंमारे जा चुके होते हैं लोगछपकर जबतक आती है अपीलअपील की ज़रूरत ख़त्म हो चुकी होती है.*****स्वर्ग में सबसे खतरनाक चीज़ हैकल्पवृक्षकहा जाता है कि मन उठते ही कोई भी इच्छापूरी कर डालता है वह तत्काललोगों का कहना हैस्वर्ग में समृद्धि है बहुतमगर ऊब वहाँ भी किसी का पीछा नहीं छोड़ती.*****कई ...
Wednesday, August 6, 2008
हरिराम-गुरू संवाद

(1) गुरु : तुम्हारा जीवन बर्बाद हो गया हरिराम! हरिराम : कैसे गुरुदेव? गुरु : तुम जीभी चलाना न सीख सके! हरिराम : पर मुझे तलवार चलाना आता है गुरुदेव! गुरु : तलवार से गरदन कटती है, पर जीभ से पूरा मनुष्य कट जाता है. (2) गुरु : हरिराम, भीड़ में घुसकर तमाशा देखा करो. हरिराम : क्यों गुरुदेव? गुरु : इसलिए की भीड़ में घुसकर तमाशा न देख सके तो खुद तमाशा बन जाओगे! (3) हरिराम : क्रांति क्या है गुरुदेव? गुरु : क्रांति एक चिड़िया है हरिराम! हरिराम : वह कहां रहती है गुरुदेव! गुरु : चतुर लोगों की ज़ुबान पर और सरल लोगों के दिलों में. हरिराम : चतुर लोग उसका क्या ...
Monday, August 4, 2008
गुलाबी चूड़ियाँ

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ, सात साल की बच्ची का पिता तो है! सामने गियर से उपर हुक से लटका रक्खी हैं काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी बस की रफ़्तार के मुताबिक हिलती रहती हैं… झुककर मैंने पूछ लिया खा गया मानो झटका अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया टाँगे हुए है कई दिनों से अपनी अमानत यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने मैं भी सोचता हूँ क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से? और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा और मैंने एक नज़र उसे देखा छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी ...
Friday, August 1, 2008
गुंग महल

खुली बहसों को दावत देनारवादार शाहंशाहों को भी परेशानी में डाल देता थाहिजरी 987-88 के दौरान दीवान-ए-ख़ास मेंजब इस बात पर मुबाहिसा हुआकि ख़ुदावंद की बनाई सबसे उम्दा शय अशरफ़-उल-मख़लूकातआदमज़ाद की वाहिद पैदाइशी मुक़द्दस ज़ुबान क्या थीतो काज़ी और उलमा इस पर यकराय थेकि अल्लाह की ज़ुबान अरबी हैजिसमें उसने कुन् कहकर कायनात को वज़ूद बख़्शाऔर किताब-उल-मुबीन को नबी पर तारी कियाउधर ब्राह्मण और दूसरे दरबारी सवर्णपूरी भयभीत विनम्रता किन्तु क्षमायाचना-भरी दृढ़ता से कहते रहेकि वेद जो सृष्टि के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं और ईश्वर-विरचित ही हैंचूँकि संस्कृत में हैं जिसे ...