इस बार जब वह छोटी सी बच्ची मेरे पास अपनी खरोंच लेकर आएगी मैं उसे फू-फू करके नहीं बहलाऊंगा पनपने दूंगा उसकी टीस को इस बार नहीं इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखूंगा नहीं गाऊंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले दर्द को रिसने दूंगा उतरने दूंगा गहरे इस बार नहीं इस बार मैं ना मरहम लगाऊंगा ना ही उठाऊंगा रुई के फाहे और ना ही कहूंगा कि तुम आंखे बंद करलो, गर्दन उधर कर लो मैं दवा लगाता हूं देखने दूंगा सबको हम सबको खुले नंगे घाव इस बार नहीं इस बार जब उलझनें देखूंगा, छटपटाहट देखूंगा नहीं दौड़ूंगा उलझी डोर लपेटने उलझने दूंगा जब तक उलझ सके इस बार नहीं इस बार कर्म का ...