सीता हुई भूमिगत, सखी बनी सूपन खा बचन बिसर गए गए देर के सबेर के ! बन गया साहूकार लंकापति विभीषण पा गए अभयदान शावक कुबेर के ! जी उठा दसकंधर, स्तब्ध हुए मुनिगण हावी हुआ स्वर्थामरिग कंधों पर शेर के ! बुढ्भंस की लीला है, काम के रहे न राम शबरी न याद रही, भूले स्वाद बेर के ! .......................... नागार्जुन कृत सा ...
Tuesday, February 24, 2009
Monday, February 9, 2009
मनुष्य एक है
इस देश में हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, ब्राह्मण हैं, चांडाल हैं, धनी हैं, गरीब हैं - विरूद्ध संस्कारों और विरोधी स्वार्थों की विराट् वाहिनी है। इसमें पद-पद पर गलत समझे जाने का अंदेशा है, प्रतिक्षण विरोधी स्वार्थों के संघर्ष में पिस जाने का डर है, संस्कारों और भावावेशों का शिकार हो जाने का अंदेशा है; परन्तु इन समस्त विरोधों और संघातों से बड़ा और सबको छाप कर विराज रहा है मनुष्य. इस मनुष्य की भलाई के लिए आप अपने आपको नि:शेष भाव से देकर ही सार्थक हो सकते हैं. सारा देश आपका है . भेद और विरोध ऊपरी हैं . भीतर मनुष्य एक हैं . इस एक को दृढ़ता के साथ पहचानने ...