हमें यह लिखते हुए दु:ख होता है कि हमारे राष्ट्रीय कार्यकर्ता भी इस रोग में उतने ही ग्रस्त हैं, जितने सरकार के कर्मचारी या वकील या कालेजों के अध्यापक। इसमें संदेह नहीं कि वे खद्दर पहनने लगे हैं, पर उनके मनोभावों में लेशमात्र भी संस्कृति नहीं आयी। किसी कमेटी की बैठक में चले जाइए, आप खद्दरधारी महाशयों को फर्राटे से अंग्रेजी झाडते हुए पायेंगे। वह शब्द और वाक्य जो उन्होंने दैनिक पत्रों या अंग्रेजी पत्रों में पढ़े हैं, बाहर निकलने के लिए अकुलाते रहते हैं और अवसर पाते ही फूट निकलते हैं। हँसी तो तब आती है जब यह हज़रत अंग्रेजी न जाननेवाली महिलाओं के सामने ...