सआदत हसन मंटो का अफ़साना नंगी आवाजें मंटो की कहानियाँ मेहनतकश जनता के मनोजगत का दस्तावेज़ भी हैं. सुनिये नंगी आवाज़ें और महसूस कीजिये उस मानवीय करुणा का ताप, जिसे बाहर रहकर पेश कर पाना बडे जिगरे का काम है. (यहां क्लीक करें)
१. खा गया पी गया दे गया बुत्ता ऐ सखि साजन? ना सखि कुत्ता! २. लिपट लिपट के वा के सोई छाती से छाती लगा के रोई दांत से दांत बजे तो ताड़ा ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा! ३. रात समय वह मेरे आवे भोर भये वह घर उठि जावे यह अचरज है सबसे न्यारा ऐ सखि साजन? ना सखि तारा! ४. नंगे पाँव फिरन नहिं देत पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत पाँव का चूमा लेत निपूता ऐ सखि साजन? ना सखि जूता! ५. ऊंची अटारी पलंग बिछायो मैं सोई मेरे सिर पर आयो खुल गई अंखियां भयी आनंद ऐ सखि साजन? ना सखि चांद! ६. जब माँगू तब जल भरि लावे मेरे मन की तपन बुझावे मन का भारी तन का छोटा ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा! ७. वो आवै तो शादी होय उस बिन दूजा और न कोय मीठे लागें वा के बोल ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल! ८. बेर-बेर सोवतहिं जगावे ना जागूँ तो काटे खावे व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी! ९. अति सुरंग है रंग रंगीले है गुणवंत बहुत चटकीलो राम भजन बिन कभी न सोता ऐ सखि साजन? ना सखि तोता! १०. आप हिले और मोहे हिलाए वा का हिलना मोए मन भाए हिल हिल के वो हुआ निसंखा ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा! ११. अर्ध निशा वह आया भौन सुंदरता बरने कवि कौन निरखत ही मन भयो अनंद ऐ सखि साजन? ना सखि चंद! १२. शोभा सदा बढ़ावन हारा आँखिन से छिन होत न न्यारा आठ पहर मेरो मनरंजन ऐ सखि साजन? ना सखि अंजन! १३. जीवन सब जग जासों कहै वा बिनु नेक न धीरज रहै हरै छिनक में हिय की पीर ऐ सखि साजन? ना सखि नीर! १४. बिन आये सबहीं सुख भूले आये ते अँग-अँग सब फूले सीरी भई लगावत छाती ऐ सखि साजन? ना सखि पाती! १५. सगरी रैन छतियां पर राख रूप रंग सब वा का चाख भोर भई जब दिया उतार ऐ सखी साजन? ना सखि हार! १६. पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो जब उतरयो तो पसीनो आयो सहम गई नहीं सकी पुकार ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार! १७. सेज पड़ी मोरे आंखों आए डाल सेज मोहे मजा दिखाए किस से कहूं अब मजा में अपना ऐ सखि साजन? ना सखि सपना! १८. बखत बखत मोए वा की आस रात दिना ऊ रहत मो पास मेरे मन को सब करत है काम ऐ सखि साजन? ना सखि राम!
1 comments
vakai ek anutha aor dard bhara ahsaas hai inhe shabdo me pirona....
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