Thursday, July 3, 2008
सहानुभूति की माँग
आत्मा इतनी थकान के बाद
एक कप चाय माँगती है
पुण्य माँगता है पसीना और आँसू पोछने के लिए एक तौलिया
कर्म माँगता है रोटी और कैसी भी सब्जी
ईश्वर कहता है सिरदर्द की गोली ले आना
आधा गिलास पानी के साथ
और तो और फकीर और कोढ़ी तक बंद कर देते हैं
थक कर भीख माँगना
दुआ और मिन्नतों की जगह
उसके गले से निकलती है
उनके गरीब फेफड़ों की हवा
चलिए मैं भी पूछता हूँ
क्या माँगू इस ज़माने से मीर
जो देता है भरे पेट को खाना,
दौलत मंद को सोना, हत्यारे को हथियार,
बीमार को बीमारी, कमज़ोर की निर्बलता
अन्यायी को सत्ता
और व्यभिचारी को बिस्तर
पैदा करो सहानुभूति
कि मैं अब भी हँसता हुआ दिखता हूँ
अब भी लिखता हूँ कविताएँ.
---------------------उदय प्रकाश की कविता, साभार
Posted by
भास्कर रौशन
at
10:09 AM
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1 comments
vaqayi bahoot achha hai, dil ko chho gai apki kavita uday ji.
tasleem ahmed
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