खट्टर काका गरी काटते हुए बोले-
मान लो, यदि जनता एक स्वर में यही कहती कि सीता को राज्य से निर्वासित कर दीजिए, तथापि राम का अपना कर्तव्य क्या था? जब वह जानते थे कि महारानी निर्दोष है, अग्निपरीक्षा में उत्तीर्ण हो चुकी है, तब संसार के कहने से ही क्या? वह अपने न्याय पर अटल रहते. यदि प्रजा विद्रोह की आशंका होती, तो पुन: भरत को गद्दी पर बैठाकर दोनों जने जंगल की राह पकड़ते, तब आदर्शपालन कहलाता. परन्तु राजा राम ने केवल राज्य की समझा, प्रेम नहीं. महारानी सीता तो अपने पत्नी धर्म के आगे संसार का साम्राज्य ठुकरा देतीं, लेकिन राम राजा अपने पतिधर्म के आगे अयोध्या की गद्दी नहीं छोड़ सके. सती शिरोमणि सीता के लिए वह उतना भी त्याग नहीं कर सके, जितना विलायत के एक बादशाह अष्टम एडवर्ड ने अपनी एक चहेती सिंप्सन के लिए किया!
______________________हरिमोहन झा, खट्टर काका का एक अंश
1 comments
ह्जारों साल पहले के युग की प्राथमिकताओं एवं मान्यताओं के आधार पर लिये गये निर्णय की आलोचना आज की् प्राथमिक्ताओं तथा मान्यताओं के परिपेक्ष में करना मेरी निगाह में उचित न होने के साथ साथ अनुचित भी है । हर युग की अपनी अपनी प्राथमिकतायें और मान्यतायें होतीं हैं । राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है ,वास्तव में यह शब्द जन मानस द्वारा पूर्णरूप से राम का पर्यायवाचि स्विकारा जा चुका है। राम तो सीता वनवास का निर्णय लेते ही स्वयं भी अपने मन के एकान्त वनवास में सीता के प्रस्थान से पूर्व ही चले गये थे ;और मन का वन वास्तविक वन की अपेक्षा अधिक एकान्तिक एवं गहन होता है । राम को मर्यादा पुरुषोत्तम अनायास नही कहा गया ,राम्सत्ता शीर्ष थे चाहते तो अपने पिता राजा दशरथ के समान दूसरा विवाह कर सकते थे;यह सत्य ख़ट्टर काका सरौते से गरी काटते समय शायद अपनी अंगुली कट्ने से बचाने के चक्कर में भूल बैठे । रही प्रजा के विद्रोह की बात ,वह तो तब होता जब राम स्वयं भी वन जाने लगते प्रमाण राम वन गमन है ऐसा रामायण और रामचरित्र मानस दोनो में उस समय के वर्णन से स्पष्ट हो जाता है ।
Post a Comment