इस देश में हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, ब्राह्मण हैं, चांडाल हैं, धनी हैं, गरीब हैं - विरूद्ध संस्कारों और विरोधी स्वार्थों की विराट् वाहिनी है। इसमें पद-पद पर गलत समझे जाने का अंदेशा है, प्रतिक्षण विरोधी स्वार्थों के संघर्ष में पिस जाने का डर है, संस्कारों और भावावेशों का शिकार हो जाने का अंदेशा है; परन्तु इन समस्त विरोधों और संघातों से बड़ा और सबको छाप कर विराज रहा है मनुष्य. इस मनुष्य की भलाई के लिए आप अपने आपको नि:शेष भाव से देकर ही सार्थक हो सकते हैं. सारा देश आपका है . भेद और विरोध ऊपरी हैं . भीतर मनुष्य एक हैं . इस एक को दृढ़ता के साथ पहचानने का यत्न कीजिए . जो लोग भेद-भाव को पकड़कर ही अपना रास्ता निकालना चाहते हैं, वे गलती करते हैं . विरोधी रहे हैं तो उन्हें आगे भी बने रहना चाहिए, यह कोई काम की बात नहीं हुई . हमें नये सिरे सबकुछ गढ़ना है, तोड़ना नहीं है, टूटे को जोड़ना है . भेद-भाव की जयमाला से हम पार नहीं उतर सकते . कबीर ने हैरान होकर कहा था:
कबीर इस संसार को समझाऊँ कै बार
पूँछ जु पकड़े भेद का, उतरा चाहै पार
मनुष्य एक है. उसके सुख-दु:ख को समझना, उसे मनुष्यता के पवित्र आसन पर बैठना ही हमारा कर्त्तव्य है.
हजारीप्रसाद द्विवेदी
मनुष्य की साहित्य का लक्ष्य है से साभार
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